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कर रही हैं, जो इंसानी चेहरे के हाव-भाव के आधार पर भावनाओं को पहचानने का दावा करता है। तेल अबीव की कंपनी "बियोंड वर्बल" भी एक ऎसे सॉफ्टवेयर को विकसित करने में जुटी है, जिसमें किसी शख्स की आवाज के आधार पर बताया जा सकेगा कि वह गुस्से में है या चिड़चिड़ाहट में। माइक्रोसॉफ्ट ने भी हाल में अपने वीडियो गेम कंसोल "एक्सवन" को साल के अंत तक लाने की घोषणा की है। यह उसी मोशन-ट्रेकिंग डिवायस काइनेट का अपेडट संस्करण है, जिसमें गेम खेलने वाला अपने हाथों और शरीर की हरकतों से गेम पर नियंत्रण करता है। क्या है कृत्रिम बुद्धिमता कृत्रिम तरीके से विकसित की गई बौद्धिक क्षमता या आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का ही असर है कि आधुनिक कंप्यूटरीकृत मशीनें किसी लिखे हुए पाठ को मानव की तरह से ही शब्दों की पहचान कर एवं पढ़ सकती है। शतरंज खेल सकती है, ध्वनियां और आवाजों को पहचान लेती हैं। कृत्रिम बुद्धिमता पर काम करने वाले कई वैज्ञानिक मानते हैं कि मानव मस्तिष्क सिर्फ एक अति विकसित कम्प्यूटर है और एक दिन इंसान इतना ही विकसित कम्प्यूटर बना लेगा जबकि दूसरे कई वैज्ञानिकों का मानना है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता के इतने पहलू मिल कर भी मनुष्य के सहज-ज्ञान या कॉमनसेंस का मुकाबला नहीं कर सकते क्योंकि मशीनों का सामथ्र्य इनकी प्रोग्रामिंग पर निर्भर करता है जबकि मानवीय मस्तिष्क की कोई सीमा नहीं है, कृत्रिम बुद्धिमता इंसानी रचनात्मकता को भी टक्कर नहीं दे सकती। शिकागो में यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनियास के शोधकत्ताüओं ने हाल में कृत्रिम बुद्धिमता तंत्र में बेहतरीन माने जाने वाले एक सिस्टम का आईक्यू टेस्ट लिया, यह मशीन सिर्फ उतनी ही स्मार्ट निकली, जितना कि एक चार वर्ष का बच्चा। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में विकसित "कंसेप्टनेट-4" का छोटे बच्चों के लिए मानक बुद्धि परीक्षण "वेचस्लर प्रीस्कूल एंड प्राइमरी स्केल ऑफ इंटेलीजेंस" आईक्यू मौखिक टेस्ट लिया गया और यूआईसी के शोधकर्ताओं के अनुसार सुपर स्मार्ट कम्प्यूटर का प्रदर्शन कुछ ऎसा रहा कि अगर कोई सामान्य बच्चा इस तरह का प्रदर्शन करें तो माना जाएगा कि उसके साथ कुछ ना कुछ गड़बड़ है। जहां तक शब्दावली और समानता की पहचान का मामला था, कंसेप्टनेट ने अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन जहां कहीं "क्यों" का सवाल आ गया, इस कृत्रिम बुद्धिमता का प्रदर्शन औसत से भी बदतर था। हालांकि "कंसेप्टनेट" को एक ऎसे नेटवर्क के तौर पर विकसित किया जा रहा है जो सूचनाओं के एक बड़े भंडार के रूप में काम करते हुए कंसेप्ट या अवधारणाओं को पकड़ सके। मसलन् दो चीजों के बीच संबंध स्थापित करते हुए कंसेप्टनेट बता सकता है कि "सैक्सोफोन" संगीत का एक यंत्र है साथ ही इसे जैज संगीत में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। इसके बावजूद वह संभवत: यह नहीं बता सकेगा कि "सेव और केले में क्या समानता है?" या कि "हम हाथ क्यों मिलाते हैं?" शोधकर्ताओं का कहना था कि "वाटसन" और "डीप ब्ल्यू" जैसे कम्प्यूटर सिस्टम के बावजूद इंसानों के "अन्र्तनिहित सहज ज्ञान" को पकड़ने जितनी कुशल मशीने अभी नहीं हुई हैं। कृत्रिम बुद्धिमता की राह में कई बाधाएं हैं, जिन्हें दूर किए जाने की कोशिश चल रही है। हम अपने आस-पास के माहौल के सहज ज्ञान को आत्मसात करते हुए बड़े होते हैं जबकि कम्प्यूटर वही निष्कर्ष देता है, जो उसमें फीड है। यही वजह है कि कम्प्यूटर को पता है कि किस तापमान पर आकर पानी बर्फ हो जाता है, लेकिन उसे बर्फ के ठंडेपन का अहसास नहीं है। वह कुत्ते और बिल्लियों के बारे में जानता है लेकिन यह नहीं कि पूंछ खींचने पर जानवर काट भी सकता है। राबर्ट स्लोम शिकागो यूनिवर्सिटी कृत्रिम बुद्धिमता और जैविक मस्तिष्क में गुणात्मक फर्क है और कुछ ऎसे काम है जो इंसानी दिमाग ही कर सकता है, टेक्नोलॉजी उसे कभी नहीं कर पाएगी। सर रोजर पेनरोस गणितज्ञ, भौतिक विज्ञानी, यूके काम नहीं आती नकली बुद्धि कम्प्यूटर की कृत्रिम बुद्धिमता यह नहीं समझ पाती कि पूल में खुशी से भी छलांग लगाई जा सकती है और ब्रिज से आत्महत्या करने के लिए भी। उसे पता है कि "पानी द्रव्य होता है और 100 सेंटीग्रेट पर उबलता है" लेकिन यह नहीं पता कि उसे जमा दिए जाने पर वह सख्त हो जाता है और उबलते हुए पानी में हाथ डालने पर यही पानी दर्द का कारण बन जाता है। किसी के डूबने की स्थिति में कम्प्यूटर आधारित कृत्रिम बुद्धिमता पहले उसे बचाने की बात कहेगी जिसकी जिंदा रहने की संभावना सबसे ज्यादा हो, जैसा कि "आई, रोबोट" फिल्म में दिखाया गया है, रोबोट एक वयस्क को पहले बचाता है और दूसरी बच्ची को डूबने के लिए छोड़ देता है। जबकि इंसानी कॉमनसेंस पहले बच्ची को बचाने का प्रयास करेगा, बाद में वयस्क को। कम्प्यूटर में कॉमनसेंस डालने में जुटे प्रोजेक्ट कंसेप्टनेट, सीवाईसी, ओपन माइंड कॉमनसेंस, थॉटट्रीजर, वर्ड नेट, बेसिक फॉर्मल आंटोलॉजी (बीएफओ), डीओएलसीई, डीएनएस, जनरल फॉर्मल आंटोलॉजी, सजेस्टेड अपर मर्ज आंटोलॉजी (सूमो), माइंड पिक्सल, ट्रयू नॉलेज, सेंटिकनेट, प्रोबेस, आदि। क्यों का कॉमनसेंस कहा जाता है कि कॉमनसेंस ही सबसे "अन-कॉमन" होता है। हम दिन में कई बार अपने सहज ज्ञान का सहारा लेते हैं और यह कतई जरूरी नहीं कि हर बार हम तर्कसंगत भी हो जबकि कम्प्यूटर हमेशा तार्किक होता है। कोई भी कम्प्यूटर "मौत" के मायने नहीं बता सकता, उसके लिए मरने का मतलब पूरी तरह सैद्धांतिक है, इसी तरह प्यार, आशा, विश्वास, तड़प, ललक जैसी भावनाओं का मशीनो को अनुभव नहीं हो पाता। साथ ही हर व्यक्ति का सहजबोध जीवन को देखने की उसकी अंर्तदृष्टि से बनता है। ऎसी कई बातों से बनता है कॉमनसेंस वगोंü और व्यक्तियों के बीच संबंध वस्तुओं के हिस्से और सामग्री रंग और आकार जैसे चीजों के गुण वस्तुओं का कार्य और उपयोग विषय की जगह और स्थिति का खाका कार्यो और घटनाओ का स्थान स्थितियों-परिस्थितियों का समय घटना घटने से पहले का अंदाजा घटना और मौकों का प्रभाव किसी काम का मंतव्य और व्यवहार वस्तुओं के काम करने का तरीका टकसाली गतिविधियां और घटनाएं इंसानी इच्छाएं और जरूरतें भाव और भावनाएं योजनाएं और रणनीतियां किसी भी स्टोरी की थीम अमित पुरोहित अपना सही जीवनसंगी चुनिए। केवल भारत मैट्रिमोनी पर - निःशुल्क रजिस्ट्रेशन! default default next news फेस पर लेस की ग्रेस Rajasthan Patrika Live TV Patrika News Tweets by PatrikaNews पिछली कहानी \ \"केटीएम\" ड्यूक अपने दो वैरिएंट करेगी लॉन्च अगली कहानी फेस पर लेस की ग्रेस फेस पर लेस की ग्रेस 1 © 2018 Patrika Group * Home * About Us * Advertise * Careers * Newsroom * Archive * Privacy Policy * Sitemap * Disclaimer * * * * Ad Block is Banned