#alternate ख़बरें अब तक ख़बरें कार्यक्रम फोटो वीडियो राज्‍यों से मूवी मसाला स्‍टाइल publisher Aaj Tak [p?c1=2&c2=8549097&cv=2.0&cj=1] * न्यूज़ * वीडियो * फोटो * गैजेट * मूवी मसाला * जुर्म * खेल * ट्रेंडिंग Dilli Aajtak Tez Aajtak Indiatoday Hindi श्रेढ़ी * मूवी मसाला फिल्‍मी खबरें ट्रेलर गॉसिप फिल्म समीक्षा इंटरव्यू छोटा पर्दा स्टार टॉक वायरल वीडियो बर्थडे स्पेशल परदेसी सिनेमा * खेल क्रिकेट स्कोर कार्ड रैंकिंग इंटरव्‍यू ओपीनियन खेल की अन्य खबरें वीडियो आईपीएल 2017 * करियर JOBS खबरें जनरल नॉलेज करंट अफेयर्स सक्सेस स्टोरी * गैजेट मोबाइल ऑटो टेक इट इजी सोशल मीडिया टैब/पीसी/लैपटॉप वीडियो फोटो गैलरी * कार्यक्रम 10 तक स्पेशल रिपोर्ट धर्म वारदात दंगल हल्ला बोल मुंबई मेट्रो इंडिया 360 विशेष सास बहू और बेटियां सो सॉरी * राज्यवार ख़बरें गुजरात हिमाचल प्रदेश महाराष्ट्र हरियाणा पंजाब राजस्थान छत्तीसगढ़ झारखंड मध्य प्रदेश दिल्ली बिहार उत्तर प्रदेश * स्त्री नारी शक्ति प्रेग्नेंसी चाइल्ड केयर ब्यूटी टिप्स फैशन मेकअप हाउसकीपिंग * जुर्म ख़बरें मर्डर मिस्ट्री चर्चित कांड साइबर क्राइम सीरियल किलर सेक्स 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इंडिया टुडे टीवी (_) Hindi (_) English ____________________ GO भारत का भविष्यफल भविष्य की चुनौतियों से कैसे निबटे भारत Hindi News/ इंडिया टुडे / आवरण कथा / हाइटेक सरहदें तोड... हाइटेक सरहदें तोडऩे पर है बड़ा दांव बंदीप सिंह बंदीप सिंह सत्य नडेला सत्य नडेला नई दिल्ली, 27 सितंबर 2017, अपडेटेड 16:04 IST * * * * * Youtube [logo.jpg] शुरुआत में मैंने सोचा था कि यह किताब कायापलट के बीच से गुजर रहे एक सीईओ की सोच-समझ का संकलन होगी. कॉर्पोरेट कायापलट की अगुआई और कायापलट करने वाली टेक्नोलॉजी रचने की दोनों भूमिकाओं की वजह से मेरा मकसद इन तजुर्बों को वर्षों बाद पीछे मुड़कर देखने की बजाए उन्हें ताजा-ताजा साझा करना था. माइक्रोसॉफ्ट का कायापलट तो बेशक चल ही रहा है. दुनिया भर में अर्थव्यवस्थाओं और टेक्नोलॉजी की अनिश्चितताओं से दो-चार होने पर हमने कारोबार की बुनियाद को ठोस शक्ल देने के लिए अपना मिशन फिर से तय किया, कार्य-संस्कृति की प्राथमिकताएं नए सिरे से बनाईं और रणनीतिक साझेदारियां बनाईं या उन्हें दुरुस्त किया. हमें नए-नए काम करने के अपने जज्बे और दिलेर दांव लगाने में भी तेजी लानी थी. इसी ने माइक्रोसॉफ्ट को पिछले 40 साल में भरोसेमंद टेक ब्रांड बनाया है. हमने क्लाउड में कामयाबी की तरफ बढऩे के लिए पीसी और सर्वर से आगे देखा. लेकिन हमें क्लाउड से भी आगे देखना पड़ा. टेक्नोलॉजी के रुझानों की भविष्यवाणी करना खतरनाक हो सकता है. कहा गया है कि हम छोटे वक्त में जो हासिल कर सकते हैं, उसके बारे में अपने को ज्यादा आंक लेते हैं, पर लंबे वक्त में जो हासिल किया जा सकता है, उसके बारे में कम आंकते हैं. लेकिन हम तीन अहम टेक्नोलॉजी में अगुआई करने के लिए निवेश कर रहे हैं जो आने वाले वर्षों में हमारे और दूसरे उद्योगों की शक्ल गढ़ेंगी—मिक्स्ड रियलिटी (मिश्रित यथार्थ), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बुद्धिमता) और क्वांटम कंप्यूटिंग. ये टेक्नोलॉजी हमारी अर्थव्यवस्था और समाज में जबरदस्त तब्दीलियों की अनिवार्य तौर पर अगुआई करेंगी. टेक्नोलॉजी के इन आने वाले बदलावों के आपसी मिलन के बारे में सोचने का एक तरीका यहां है. मिक्स्ड रियलिटी या मिश्रित यथार्थ टेक्नोलॉजी के साथ हम कंप्यूटिंग का सबसे शानदार तजुर्बा रच रहे हैं. ऐसा तजुर्बा जिसमें आपकी देखने की जगह कंप्यूटिंग की सतह बन जाती है और डिजिटल दुनिया और आपकी भौतिक दुनिया एक हो जाती है. डेटा, ऐप और यहां तक कि वे संगी-साथी और दोस्त जिन्हें आप अपने फोन या टैबलेट पर चाहते हैं, अब जहां से भी आप उन तक पहुंचना चाहें—चाहे आप दक्रतर में काम कर रहे हों, ग्राहक से मिलने गए हों या कॉन्फ्रेंस रूम में साथियों के साथ मिलकर काम कर रहे हों—हर जगह आपके साथ मौजूद हैं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या कृत्रिम बुद्धिमता गहरी और पैनी समझ तथा पूर्वानुमान लगाने की क्षमता के साथ, जिसे अपने दम पर हासिल करना नामुमकिन होता, मानव क्षमता को बढ़ाकर हरेक तजुर्बे को जोरदार बना देती है. आखिर में, क्वांटम कंप्यूटिंग हमें मूर के नियम—जो कहता है कि एक कंप्यूटर चिप में ट्रांजिस्टरों की तादाद हर दो साल में दोगुनी हो जाती है-के दायरों से आगे जाने का सामथ्र्य देती है और ऐसा करने के लिए यह कंप्यूटिंग की हर उस भौतिकी को बदल देती है जिसे हम आज जानते हैं, और दुनिया की बड़ी से बड़ी और सबसे जटिल समस्याओं को हल करने के लिए कंप्यूट करने की ताकत देती है. मिक्स्ड रियलिटी (एमआर), आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (एआइ) और क्वांटम कंप्यूटिंग (क्यूसी) आज भले ही अलग-अलग स्वतंत्र धाराएं हों, पर वे एक साथ आने जा रही हैं. हम इस पर दांव लगा रहे हैं. टेक्नोलॉजी की जो कंपनी इन बहुत सारे रुझानों से चूक जाती है, उसका पीछे छूटना तय है. वहीं मौजूदा कारोबार की बुनियाद की अनदेखी करते हुए बगैर आजमाई हुई भविष्य की टेक्नोलॉजी का पीछा करना बेशक खतरनाक है. यह नवाचार या नई चीजें करने वाले की पारंपरिक कशमकश है—नए मौकों की छानबीन करते हुए मौजूदा कामयाबी को जोखिम में डालना. ऐतिहासिक तौर पर माइक्रोसॉफ्ट ने सही संतुलन बिठाने के लिए बाज दफे खासी जद्दोजहद की है. आइपॉड से पहले हमारे पास वाकई टैबलेट था; किंडल से पहले हम ई-रीडर के रास्ते पर काफी आगे आ चुके थे. मगर कुछ मामलों में हमारा सॉफ्टवेयर कामयाबी के लिए जरूरी अहम चीजों मसलन टचस्क्रीन हार्डवेयर या ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी से आगे था. दूसरे मामलों में हमारे पास एक के बाद एक डिजाइन की सोच नहीं थी ताकि बाजार में मुकम्मल समाधान ला पाते. हम प्रतिस्पर्धी का तेजी से पीछा करने में कुछ ज्यादा ही आत्मविश्वास से भर गए थे और यह भूल गए थे कि ऐसी एक रणनीति के अपने भीतरी जोखिम हैं. हमारे अपने बेहद कामयाब बिजनेस मॉडल के साथ छेड़छाड़ करने को लेकर शायद हम भयाक्रांत भी थे. हमने इस सबसे सीखा. भविष्य को ईजाद करने का कोई सूत्र या फॉर्मूला नहीं है. एक कंपनी अनूठे ढंग से जो कुछ कर सकती है, उसको लेकर उसे एक मुकम्मल दूरदृष्टि हासिल करनी होती है और फिर उसे जमीन पर उतारने के गहरे भीतरी भरोसे और क्षमता के साथ पीछे से ताकत देनी होती है. नई चीजें करने की कशमकश में फंसने से बचने के लिए—और पूरा ध्यान हमेशा आज की बेहद जरूरी चीजों पर डालने से हटकर आने वाले कल की अहम चीजों पर विचार करने के लिए—हमने वृद्धि के तीन क्षेत्रों में निवेश रणनीति पर नजर डालने का फैसला कियाः एक, आज के मूल कारोबार और टेक्नोलॉजी को बढ़ाएं; दूसरे, भविष्य के लिए नए विचारों और उत्पादों को खाद-पानी दें; और तीसरे, लंबे वक्त की नई ईजादों में निवेश करें. मिश्रित यथार्थ के लोग हमारा उद्योग खोज के यूरेका लम्हों से भरा पड़ा है. मेरा सबसे चौंकाने वाला लम्हा हैरतअंगेज ढंग से मंगल ग्रह की सतह पर आया—जब मैं माइक्रोसॉफ्ट बिल्डिंग 92 के बेसमेंट में खड़ा था. वहीं मैंने पहली बार होलोलेंस डिवाइस पहनी. यह एक छोटा-सा सिर पर पहना जाने वाला कंप्यूटर है जिसमें अपने आप में सब कुछ है. होलोलेंस ने मुझे अचानक 25 करोड़ मील दूर लाल ग्रह की सतह पर पहुंचा दिया—बेशक वर्चुअल या आभासी तौर पर—नासा के मार्स रोवर क्यूरोसिटी के एक फीड की बदौलत. होलोलेंस के जरिए मैं देख सका कि मेरे रोजमर्रा के एक जोड़ी जूते मंगल के धूल भरे मैदान में एक चट्टानी पड़ाव के नजदीक, जिसे किंबरली कहा जाता है, रोवर के साथ-साथ चल रहे थे जब वह मुरे बट्स के अपने सफर पर जा रहा था—इस तरह कि इस पर हैरानी भी होती थी और बेहद भरोसा भी होता था. होलोलेंस ने मेरे लिए यह मुमकिन बनाया कि मैं असल कमरे में चारों तरफ घूम भी सकता था—डेस्क को देख सकता और आसपास के लोगों से बात कर सकता था—और मंगल की सतह पर चट्टानों का जायजा ले सकता था. यह वह फितरत है जिसे हम मिक्स्ड रियलिटी कहते हैं. यह तजुर्बा इस कदर प्रेरक, दिल को छूने वाला था कि उस आभासी सैर के दौरान मेरी लीडरशिप टीम के एक सदस्य की आंखें भर आईं. उस रोज मैंने जो देखा और जो तजुर्बा किया, वह माइक्रोसॉफ्ट के भविष्य की एक झलक थी. यह खास लम्हा शायद मिश्रित यथार्थ की क्रांति के ईजाद के तौर पर याद किया जाएगा. एक ऐसी क्रांति जिसमें हर कोई एक इमरसिव (तल्लीन और 3डी) माहौल में काम करता और खेलता है जहां असल दुनिया और आभासी दुनिया मिलकर एक हो जाती है. क्या एक दिन इस मिश्रित यथार्थ के लोग होंगे—ऐसे युवा लोग जो उम्मीद करेंगे कि उनके तमाम कंप्यूटर तजुर्बों में असल और आभासी एक दूसरे में मिलकर एक हो जाएं—ठीक उसी तरह जैसे आज हम डिजिटल लोगों को पहचानते हैं, जिनके लिए इंटरनेट हमेशा से रहा है? कंपनियां सिर पर पहनने वाले कंप्यूटरों को लेकर अलहदा तरीके अपना रही हैं. वर्चुअल या आभासी यथार्थ, जैसा कि वह हमारी विंडो 10एमआर डिवाइस या फेसबुक की ओक्युलस रिक्रट में दिया गया है, मोटे तौर पर असल दुनिया के दरवाजे बंद कर देता है और यूजर को पूरी तरह डिजिटल दुनिया में डुबो देता है. मसलन, गूगल ग्लास जानकारी को आपके आंख के चश्मे पर ला देता है. स्नैपचैट स्पेक्टैकल्स आप जो देखते हैं उसे जरूरी कंटेट और फाइलों के साथ आपको बढ़ाने देता है. होलोलेंस मिश्रित यथार्थ की दुनिया में आपको ले जाता है जिसमें यूजर अपनी मौजूदा जगह—यानी उसी कमरे में लोगों के साथ बातचीत वगैरह—और दूरदराज के वातावरण दोनों तक आपको ले जा सकता हैं. टेक्नोलॉजी रिसर्च फर्म गार्टनर इंक. के विश्लेषकों ने हाइप साइकल और आर्क के अध्ययन से एक कला बनाई है और उसके बाद नई टेक्नोलॉजी सामने आई हैं. वहीं वे मानते हैं कि वर्चुअल रियलिटी या आभासी यथार्थ की टेक्नोलॉजी के मुख्यधारा में आने में पांच से दस साल लग सकते हैं. एआइ की हैरतअंगेज क्षमता और संभावना बिग डेटा, कंप्यूटिंग की जबरदस्त ताकत और जटिल कृत्रिम एल्गोरिद्म—इन तीन बड़ी ईजादों के मेल ने आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस को साइंस फिक्शन से हकीकत में बदलने की रफ्तार को तेज कर दिया है. हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में कैमरों और सेंसरों की कई गुना बढ़ोतरी की बदौलत डेटा हैरान करने वाली तेज रप्तार से इकट्ठा किया जा रहा है और सुलभ करवाया जा रहा है. एआइ को डेटा समझने की जरूरत पड़ती है. क्लाउड ने हर किसी को कंप्यूटिंग की जबरदस्त ताकत मुहैया करवा दी है और डेटा के विशाल पहाड़ों से गहरी गूढ़ बातें और छिपी हुई जानकारियों को पहचानने और अलग करने के लिए अब जटिल एल्गोरिद्म लिखी जा सकती हैं. एआइ उससे कुछ ही दूर है जिसे आर्टिफीशियल जनरल इंटेलिजेंस (एजीआइ) कहा जाता है, यानी जब कंप्यूटर इनसान की बौद्धिक क्षमताओं के बराबर आ जाता है या उससे भी आगे निकल जाता है. इनसानी अक्लमंदी की तरह कृत्रिम बुद्धिमता को भी परतों में बांट सकते हैं. सबसे नीचे की परत सीधे-सादे पैटर्न को पहचानना है. बीच की परत समझ या धारणा है जो जटिल से जटिल दृश्यों को समझ लेती है. हिसाब लगाया गया है कि 99 फीसदी इनसानी समझ बोलने और देखने से बनती है. आखिर में, इंटेलिजेंस का सबसे ऊंचा स्तर संज्ञान है, यानी इनसानी जबान की गहरी समझ. मैं मानता हूं कि दस साल में एआइ की बोली और दृश्य पहचानने की क्षमता इनसानी क्षमता से ज्यादा होगी. लेकिन सिर्फ इसलिए कि एक मशीन देख और सुन सकती है, इसका यह मतलब नहीं है कि यह सचमुच सीख और समझ भी सकती है. कुदरती जबान को समझना, कंप्यूटरों और इनसानों के बीच बातचीत—अगली सरहद है. तो एआइ को लेकर जो इतना समा बांधा गया है, उस पर यह खरी कैसे उतरेगी? एआइ इतनी ऊंची कैसे उठ सकेगी कि सभी के काम आ सके? जवाब फिर परतदार हैः पहले से तयः आज हम एआइ की बिल्कुल सबसे निचली मंजिल यानी भूतल पर हैं. जिन टेक्नोलॉजी कंपनियों को डेटा, कंप्यूटिंग ताकत और एल्गोरिद्म तक पहुंच का खास हक हासिल है, वे एआइ प्रोडक्ट बनाती हैं और मुहैया कराती हैं. लोकतंत्रीकृतः एआइ को लोकतांत्रिक बनाने का मतलब है हरेक शख्स और हरेक संगठन को यह ताकत देना कि वह अपनी खास जरूरतों को पूरा करने वाले शानदार एआइ समाधान तैयार कर सके. इसलिए हमारी दृष्टि ऐसे औजार बनाने की है जिनमें ऐसी सच्ची कृत्रिम अक्लमंदी हो जिसे एजेंटों, एप्लिकेशनों, सेवाओं और बुनियादी ढांचों के भीतर डाला जा सके. सीखना कि कैसे सीखें: सबसे आखिर में, कंप्यूटर बिल्कुल आधुनिक तब होते हैं जब वे सीखना सीख लेते हैं—जब कंप्यूटर खुद अपने प्रोग्राम बनाने लगते हैं. इनसानों की तरह कंप्यूटर भी लोग जो करते हैं उसकी नकल करने से आगे जाएंगे और समस्याओं के नए, बेहतर समाधानों की ईजाद करेंगे. दिमाग चकराने वाली क्वांटम कंप्यूटिंग अगर एआइ के इस काम की क्षमता और संभावनाएं हैरतअंगेज हैं, तो क्वांटम कंप्यूटिंग की क्षमता और संभावनाएं दिमाग चकराने वाली हैं. क्वांटम कंप्यूटिंग की इबारत तय करना कोई आसान काम नहीं है. इसकी शुरुआत 1980 के दशक में हुई थी. क्वांटम कंप्यूटिंग अणुओं और नाभिक के कुछ निश्चित भौतिक गुणों का फायदा उठाती है जो उसे क्वांटम बिट, या क्यूबिट, के तौर पर मिलकर काम करने देते हैं और इस तरह यह कंप्यूटर का प्रोसेसर और मेमोरी बन जाती है. ये क्यूबिट हमारे माहौल से कटे रहकर आपस में एक दूसरे से बातचीत करते हैं और इस तरह कुछ निश्चित गणनाएं पारंपरिक या शास्त्रीय कंप्यूटरों से कई गुना ज्यादा तेज रफ्तार से कर सकते हैं. प्रकाश संश्लेषण, पंछियों का एक से दूसरी जगहों पर जाना और मानव चेतना का अध्ययन क्वांटम प्रक्रियाओं के तौर पर किया गया है. क्वांटम की दुनिया में कुछ रिसर्चर अटकल लगा रहे हैं कि हमारे दिमाग और कंप्यूटिंग के बीच कोई रुकावट नहीं रह जाएगी. अभी यह दूर की कौड़ी है, पर क्या एक दिन चेतना कंप्यूटेशन के साथ मिल सकती है? इसे समझने के लिए जो तेजी से दौड़ लगा रहे हैं, उनमें माइक्रोसॉफ्ट, इनटेल, गूगल और आइबीएम के साथ डी-वेव सरीखे स्टार्ट-अप और यहां तक कि भारी-भरकम राष्ट्रीय रक्षा बजटों से लैस सरकारें भी हैं. बेशक अगर क्वांटम कंप्यूटिंग को बनाना आसान होता, तो अब तक इसे बना लिया गया होता. अभी तक हमने 30 से ज्यादा पेटेंट हासिल किए हैं, पर समापन रेखा अब भी दूर है. क्लाउड, आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस और मिक्स्ड रियलिटी की दौड़ शोरशराबे और प्रचार से वाबस्ता है, वहीं क्वांटम कंप्यूटिंग की दौड़ की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं गया है, जिसकी कुछ वजह इसकी पेचीदगी और गोपनीयता भी है. 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