
सरलता और सहजता के नाम पर हिंदी को रोमन लिपि में लिखने का षड़्यंत्र रचा जा रहा है. हिंदी को रोमन लिपि में लिखना अवैज्ञानिक ही नही बल्कि अंग-भंग और बलात्कार करने जैसा घिनौना कर्म है. रोमन में हिंदी , वैसी ही लगती है, जैसे किसी भारतीय महिला को साड़ी के स्थान पर चोली और मिनी स्कर्ट पहना दें . रोमन लिपि के 27 अक्षर हिंदी की समस्त ध्वनियों को लिखने में सक्षम नही है. वैसे भाषा वैज्ञानिकों ने हिंदी ध्वनियों के लिपि चिह्न बना लिए हैं ,परंतु आम आदमी उन्हें नही जानता है. N के के माध्यम से हम न का उच्चारण करते हैं, परंतु ङ, ञ, ण को लिखने के लिए भी N का ही प्रयोग करते हैं. जिससे इनका उच्चारण भी न हो जाता है.रोमन में गड़बड़ लिखने जाओ तो गडबड हो जाता है. ड़, ढ़, ऋ ळ ष ध्वनियों की हत्या हो जाती है. T के कारण तमस, टमस बोला जाता है. मिश्र, मिश्रा तथा सिंह ,सिन्हा बन गए . बेचारे !राम रामा तथा कृष्ण कृष्णा होगए. लार्ड मैकाले तो थे ही, जिनकी कृपा से भगवान जगन्नाथ, लार्ड जगन्नाथ हो गए!
रोमन में A का उच्चारण कहीं अ, आ, तथा ए होता है. BHARAT लिखने पर उसका उच्चारण भारत्, भरत, भरात, भेरत, भारट, भाराट, भेरट, भेरेट, भरेट, भी हो सकता है. रोमन जब भारत की मट्टी पलीद कर सकती हे तो भारतीयों के क्या हाल करेगी ? भारतीय भाषाओं के शुद्ध उच्चारण के लिए देवनागरी लिपि ही सर्वोत्तम है. अपनी भाषा और संस्कृति का संरक्षण करना देश की सीमाओं की रक्षा करने से कम नही है. हमें विकृत होती हुई हिंदी को बचाना है. देश की भाषाएँ स्वतंत्र रहने की प्रेरणा देती है और विदेशी भाषा हमें मानसिक गुलामी की और ले जाती है . अँग्रेजी और रोमन लिपि विदेशी व्यापार के लिए तो ठीक है ,परंतु देश के विकास के लिए तो हिंदी और भारतीय भाषाएँ तथा लिपियाँ अत्यावश्यक है. आपका योगदान हिंदी चाहती है. यह एक राष्ट्रीय कर्तव्य है.
आलेख लेखक : मोहन रावल
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