ब्राह्मी लिपि अशोक-काल

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहां जाएं: भ्रमण, खोज
आपसे एक व्यक्तिगत अनुरोध, कृपया अवश्य पढ़ें
गणराज्य कला पर्यटन दर्शन इतिहास धर्म साहित्य सम्पादकीय सभी विषय ▼

अशोक की ब्राह्मी लिपि

अन्य संबंधित लेख


  1. शिलास्तंभ लेख, और
  2. शिलाफलक लेख।

शिलास्तंभ एक ही प्रस्तर-खंड के हैं और ये चुनार के बलुआ पत्थरों से बनाए गए हैं। इन पर किया हुआ बहुत बढ़िया ओप (पॉलिश) आज भी हमें आश्चर्य में डाल देता हैं। इन्हें दूर-दूर तक कितनी कठिनाई से ले जाया गया होगा, इसका अंदाजा हमें फीरोजशाह द्वारा 14वीं शताब्दी में टोपरा और मेरठ से अशोक के स्तंभों के दिल्ली लाए जाने के विवरण से लग सकता है। अशोक के शिलास्तंभ आज निम्नलिखित स्थानों पर हैं:
इलाहाबाद-कोसम शिलास्तंभ

मूलत: इस स्तंभ को कौशंबी नगरी (आधुनिक कोसम- इलाहाबाद से लगभग 50 किलोमीटर दूर एक छोटा-सा गांव) में स्थापित किया गया था। इस बात की कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती कि कौन इसे इलाहाबाद ले आया। इस स्तंभ पर अशोक के 6 लेख हैं। इस पर उसके दो लेख और हैं, जो 'रानी का स्तंभलेख' (क्योंकि इसमें उसकी एक रानी कालुवाकी के दान का उल्लेख है) और 'कौशांबी का स्तंभलेख' के नाम से प्रसिद्ध हैं। इसी स्तंभ पर बाद में समुद्रगुप्त (320-375 ई.) ने भी अपना एक लेख खुदवाया था। मुग़ल बादशाह जहाँगीर (1605-27 ई.) का भी एक फ़ारसी लेख इस पर मिलता है।
रुम्मिनदेई स्तंभलेख
रुम्मिनदेई, लुंबिनी के मंदिर के पास खड़ा होने से इसे यह नाम दिया गया है। यह स्थान बस्ती ज़िले के दुल्हा गांव से लगभग 8 किलोमीटर दूर नेपाल की भगवानपुर तहसील में है। इसी स्थान पर भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। अशोक अपने राज्याभिषेक के 20 साल बाद इस स्थान पर पूजा करने आया था।
निगाली-सागर शिलास्तंभ
यह स्थान भी बस्ती ज़िले के उत्तर में नेपाल की तराई में है, और रुम्मिनदेई से लगभग बीस किलोमीटर पश्चिमोत्तर की तरफ है। यह स्तंभ निगलीव गांव के पास निगाली सागर नाम के एक विशाल सरोवर के पास खड़ा है। अशोक यहाँ भी पूजा के लिए आया था। गौतम बुद्ध के भी पहले के किसी कनकमुनि बुद्ध के शरीरावशेषों पर यहाँ एक स्तूप बनाया गया था।
दिल्ली-टोपरा शिलास्तंभ
इस स्तंभ को फीरोजशाह (1351-88 ई.) ने टोपरा, अंबाला ज़िला, हरियाणा से मंगवाकर दिल्ली में खड़ा करवाया था। इस पर सात लेख हैं।
दिल्ली-मेरठ शिलास्तंभ
इसे भी फीरोज मेरठ से उठाकर लाया था। फर्रुखसियर के समय (1713-19 ई.) में बारूदखाने के फटने से इस स्तंभ को बड़ा नुक़सान पहुंचा और इसके कई टुकड़े हो गए। 1876 में इसे वर्तमान रूप में खड़ा किया गया।
चंपारन ज़िले के तीन स्तंभ
बिहार के चंपारन ज़िले में अशोक के तीन स्तंभ मिलते हैं-

  1. राधिया के पास लौरिया अराराज में,
  2. मठिया के पास लौरिया नंदनगढ़ में,
  3. रमपुरवा में।

इनमें से प्रत्येक पर छह लेख हैं।
सांची स्तंभ
यह स्थान मध्य प्रदेश में भोपाल के पास है। यहाँ का स्तंभ खंडित अवस्था में है।
सारनाथ स्तंभ
सारनाथ स्तंभ वाराणसी के पास है। यहाँ से अशोक का एक भग्न स्तंभ और सुप्रसिद्ध सिंहशीर्ष मिला है।

  1. मुख्य शिलालेख या चतुर्दश-शिलालेख और
  2. लघु-शिलालेख।

लघु-शिलालेख

लघु-शिलालेख निम्न स्थानों पर पाए गए हैं:

  1. बैराट : राजस्थान के जयपुर ज़िले में। यह शिलाफलक कलकत्ता संग्रहालय में है।
  2. रूपनाथ: जबलपुर जिला, मध्य प्रदेश
  3. मस्की : रायचूर ज़िला, कर्नाटक
  4. गुजर्रा : दतिया ज़िला, मध्य प्रदेश
  5. राजुलमंडगिरि : बल्लारी ज़िला, कर्नाटक
  6. सहसराम : शाहाबाद ज़िला, बिहार
  7. गाधीमठ : रायचूर ज़िला, कर्नाटक
  8. पल्किगुंडु : गवीमट के पास, रायचूर ज़िला, कर्नाटक
  9. ब्रह्मगिरि : चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक
  10. सिद्धपुर : चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक
  11. जटिंगा रामेश्वर : चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक।
  12. एर्रगुड़ी : कर्नूल ज़िला, आंध्र प्रदेश
  13. दिल्ली : अमर कॉलोनी, दिल्ली
  14. अहरौरा : मिर्जापुर ज़िला, उत्तर प्रदेश

मुख्य शिलालेख

अशोक के चतुर्दश-शिलालेख या मुख्य शिलालेख निम्नलिखित स्थानों पर पाए जाते है :

  1. गिरनार : सौराष्ट्र, गुजरात राज्य में जूनागढ़ के पास। इसी चट्टान पर शक महाक्षत्रप रुद्रदामन् ने लगभग 150 ई. में संस्कृत भाषा में एक लेख खुदवाया। बाद में गुप्त-सम्राट स्कंदगुप्त (455-67 ई.) ने भी यहाँ एक लेख अंकित करवाया। चंद्रगुप्त मौर्य ने यहाँ 'सुदर्शन' नाम के एक सरोवर का निर्माण करवाया था। रुद्रदामन तथा स्कंदगुप्त के लेखों में इसी सुर्दशन सरोवर के पुनर्निर्माण की चर्चा है।
  2. कालसी : देहरादून ज़िला, उत्तरांचल
  3. सोपारा : (प्राचीन सूप्पारक) ठाणे ज़िला, महाराष्ट्र। यहाँ से अशोक के शिलालेख के कुछ टुकड़े ही मिले हैं, जो मुंबई के प्रिन्स आफ वेल्स संग्रहालय में रखे हुए हैं।
  4. एर्रगुड़ी : कर्नूल ज़िला, आंध्र प्रदेश
  5. धौली : पुरी ज़िला, उड़ीसा
  6. जौगड़ : गंजाम ज़िला, उड़ीसा

अयं धंमलिपि देवानंप्रियेन प्रियदसिना राञा लेखापिता अस्ति एव संखितेन अस्ति मझमेन अस्ति विस्ततन (.) न च सर्वं सर्वत घटितं (.) महालके हि विजितं बहु च लिखितं लिखापयिसं चेव (.) अस्ति च एत कं पुन वुतं तस तस अथस माधूरताय किंति जनो तथा पटिपजेथ (.) तत्र एकदा असमातं अस देसं व सछाय कारणं व अलोचेत्वा लिपिकरापरधेन व अर्थात ये धर्मलेख देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ने लिखवाए हैं। (ये लेख) कहीं संक्षेप में, कहीं मध्यम रूप में और कहीं विस्तृत रूप में हैं। क्योंकि सब जगह सब बातें लागू नहीं होतीं (किसी किसी ने इसका अर्थ 'सब जगह सब बातें या सब लेख नहीं लिखे गए है', भी किया है)। मेरा राज्य बहुत विस्तृत है, इसलिए बहुत-से (लेख) लिखवाए गए हैं और बहुत-से लगातार लिखवाए जाएंगे। कहीं-कहीं विषय की रोचकता के कारण एक ही बात बार-बार कही गई है, जिससे कि लोग उसके अनुसार आचरण करें। इन लेखों में जो कुछ अपूर्ण लिखा गया हो उसका कारण देश-भेद, संक्षिप्त लेख या लिखनेवाले का अपराध समझना चाहिए।

क ख ग घ य र ल व च छ ज झ ञ श ष स ह ट ठ ड ढ ण ड़ (ळ) त थ द ध न प फ ब भ म

ब्राह्मी लिपि
अशोक की ब्राह्मी लिपि के अक्षर

ब्राह्मी लिपि
अशोक के ब्राह्मी व्यंजनों के साथ स्वर-मात्राएं जोड़ने की व्यवस्था

इन सभी व्यंजनों में 'अ' स्वर निहित है, अर्थात् ये स्वरांत हैं, हलंत नहीं हैं। यहाँ पर प्रत्येक अक्षर की विशेषता को व्यक्त करना मुद्रण की कठिनाइयों के कारण संभव नहीं है। फिर भी हम मोटे तौर पर अशोक के लेखों के अक्षरों की कुछ विशेषताओं पर प्रकाश डालेंगे। 'क' जोड़ के चिह्न-सा 'क्रॉस' की तरह का है। अशोक के किसी भी लेख में 'ङ' के लिए संकेत नहीं मिलता। अशोक के लेखों में सभी ऊष्मा व्यंजन मिलते हैं, परंतु उनमें से 'स' का ही सर्वाधिक प्रयोग देखने को मिलता है। 'श' और 'ष' कालसी के शिलालेख में मिलते हैं। 'श' कर्नाटक के लेखों में भी है। अशोक के खरोष्ठी लेखों में भी 'श', 'ष' तथा 'स' के लिए अक्षर हैं। स्तंभलेखों में 'ड़' ('ळ्') के लिए अक्षर मिलता है। एळ्क, दळि जैसे पशुवाचक शब्दों में इस अक्षर का उपयोग देखने को मिलता है।

वैसे, इन शिलालेखों को खोदते समय काफ़ी सावधानी बरती गई थी। लेख के खुद जाने पर उसे पुन: शुद्ध भ् किया जाता था। देखने में आता है कि कुछ जगह भूल से छूट गए अक्षर को पुन: लिखा गया है और अशुद्ध अक्षर को मिटा दिया गया है। यह सही है कि अशोक की ब्राह्मी लिपि के कई अक्षरों के दो-दो, तीन-तीन रूप देखने को मिलते हैं, किंतु यह प्रादेशिक अंतर नहीं है। अंत में हम यही कहेंगे कि अशोक के ये धर्मलेख भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि हैं। आज के भारत की प्राय: सभी लिपियां, और विदेशों की भी बहुत-सी लिपियां, अशोक के लेखों की इस ब्राह्मी को अपनी जननी मान सकती हैं। संसार के इतिहास में अशोक को छोड़कर अन्य किसी भी शासक ने इतने विशाल स्तर पर नैतिक एवं धार्मिक लेख नहीं खुदवाए हैं। यहाँ हम अशोक के ब्राह्मी लेखों के कुछ नमूने दे रहे हैं- लिप्यंतर और अर्थ-सहित।

ब्राह्मी लिपि
रुम्मिनदेई के अशोक-स्तंभ पर ख़ुदा हुआ यह लेख
ब्राह्मी लिपि में है और बाईं ओर से दाईं ओर को पढ़ा जाता है :

लिप्यंतर

  1. देवानं पियेन पियदसिन लाजिन वीसतिवसाभिसितेन
  2. अतन आगाच महीयिते हिद बुधे जाते सक्यमुनीति
  3. सिलाविगडभीचा कालापित सिलाथभे च उसपापिते
  4. हिद भगवं जातेति लुंमिनिगामे उबलिके कटे
  5. अठभागिये च

अर्थ :

  1. देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ने (अपने) राज्याभिषेक के 20 वर्ष बाद स्वयं आकर इस स्थान की पूजा की,
  2. क्योंकि यहाँ शाक्यमुनि बुद्ध का जन्म हुआ था।
  3. यहाँ पत्थर की एक दीवार बनवाई गई और पत्थर का एक स्तंभ खड़ा किया गया।
  4. बुद्ध भगवान यहाँ जनमे थे, इसलिए लुम्बिनी ग्राम को कर से मुक्त कर दिया गया और
  5. (पैदावार का) आठवां भाग भी (जो राज का हक था) उसी ग्राम को दे दिया गया है।

ब्राह्मी लिपि
अशोक का गिरनार का प्रथम शिलालेख

लिप्यंतर

  1. इयं धंमलिपि देवानंप्रियेन
  2. प्रियदसिना राजा लेखापिता [।] इध न किं
  3. चि जीवं आरभित्पा प्रजूहितव्यं [।]
  4. न च समाजो कतव्यो [।] बहुकं हि दोसं
  5. समाजम्हि पसति देवानंप्रियो प्रियदसि राजा [।]
  6. अस्ति पि तु एकचा समाजा साधुमता देवानं
  7. प्रियस प्रियदसिनो राञो [।] पुरा महानसम्हि
  8. देवानंप्रियस प्रियदसिनो राञो अनुदिवसं ब
  9. हूनि प्राणसतसहस्त्रानि आरभिसु सूपाथाय [।]
  10. से अज यदा अयं धंमलिपि लिखिता ती एव प्रा
  11. णा आरभरे सूपाथाय द्वो मोरा एको मगो सो पि
  12. मगो न ध्रुवो [।] एते पि त्री प्राणा पछा न आरभिसरे [॥]

अर्थ

  1. यह धर्मलिपि देवताओं के प्रिय
  2. प्रियदर्शी राजा ने लिखाई। यहाँ (मेरे साम्राज्य में)
  3. कोई जीव मारकर हवन न किया जाए।
  4. और न समाज (आमोद-प्रमोद वाला उत्सव) किया जाए। क्योंकि बहुत दोष
  5. समाज में देवताओं का प्रिय प्रियदर्शी राजा देखता है।
  6. (परंतु) एक प्रकार के (ऐसे) समाज भी हैं जो देवताओं के
  7. प्रिय प्रियदर्शी राजा के मत में साधु हैं। पहले पाकशाला में-
  8. देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा की – प्रतिदिन कई
  9. लाख प्राणी सूप के लिए मारे जाते थे।
  10. किंतु आज जब यह धर्मलिपि लिखाई गई, तीन ही प्राणी
  11. मारे जाते- दो मयूर तथा एक मृग। और वह भी
  12. मृग निश्चित नहीं। ये तीन प्राणी भी बाद में नहीं मारे जाएंगे।

ब्राह्मी लिपि
अशोक का गिरनार का द्वितीय शिलालेख

लिप्यंतर

  1. सर्वत विजितम्हि देवानंप्रियस पियदसिनो राञो
  2. एवमपि प्रचंतेषु यथा चोडा पाडा सतियपुतो केतलपुतो आ तंब-
  3. पंणी अंतियको योनराजा ये वा पि तस अंतियकस सामीपं
  4. राजानो सर्वत्र देवानंप्रियस प्रियदसिनो राञो द्वे चिकीछ कता
  5. मनुसचिकीछा च पसुचिकीछा च [।] ओसुढानि च यानि मनुसोपगानि च
  6. पसोपगानि च यत यत नास्ति सर्वत हारापितानी च रोपापितानि च [।]
  7. मूलानि च फलानि च यत तत्र नास्ति सर्वत हारापितानी च रोपापितानि च [।]
  8. पंथेसू कूपा च खानापिता व्रछा च रोपापिता परिभोगाय पसुमनुसानं [॥]

अर्थात

  1. देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ने अपने राज्य में सब जगह और
  2. सीमावर्ती राज्य- चोड़, पांड्य, सतियपुत्र, केरलपुत्र तथा ताम्रपर्णी (श्रीलंका)- तक
  3. और अंतियोक यवनराज तथा उस अंतियोक के जो पड़ोसी राजा हैं,
  4. उन सबके राज्यों में देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ने दो प्रकार की चिकित्सा का प्रबंध किया है-
  5. मनुष्यों की चिकित्सा के लिए और पशुओं की चिकित्सा के लिए।
  6. मनुष्यों और पशुओं के लिए जहां-जहां औषधियां नहीं थीं वहां-वहां लाई और रोपी गई हैं।
  7. इसी प्रकार, जहां-जहां मूल व फल नहीं थे वहां-वहां लाए और रोपे गए हैं।
  8. मार्गों पर मनुष्यों तथा पशुओं के आराम के लिए कुएं खुदवाए गए हैं और वृक्ष लगाए गए हैं।

ब्राह्मी लिपि
अशोक का बराबर गुफ़ालेख (द्वितीय)

लिप्यंतर :

  1. लाजिना पियदसिना दुवा
  2. डसवसाभिसितेना इयं
  3. कुभा खलतिक पवतसि
  4. दिना (आजीवि) केहि

(अशोक के बराबर गुफ़ा के प्रथम और इस द्वितीय लेख में, लगता है, किसी ने बाद में 'आजीविकेहि' शब्द मिटाने की कोशिश की है। अशोक-पौत्र दशरथ के नागार्जुन पहाड़ी के प्रथम लेख में भी ऐसा ही हुआ है।)
अर्थ:
द्वादश वर्ष से अभिषिक्त राजा प्रियदर्शी ने खलतिक पर्वत पर (स्थित) यह गुफ़ा आजीविकों को प्रदान की।

टीका टिप्पणी

  1. देवताओं के प्रिय और सभी पर कृपा करने वाले राजा

संबंधित लेख


ऊपर जायें

प्रमुख विषय सूची

गणराज्य कला पर्यटन जीवनी खेल दर्शन संस्कृति
इतिहास भाषा साहित्य विज्ञान कोश धर्म भूगोल
सम्पादकीय फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत) फ़ेसबुक पर शेयर करें
प्रांगण मुखपृष्ठ सुझाव दें ट्वीट करें

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

अं
क्ष त्र ज्ञ श्र अः
यह सामान्य से बड़ा पन्ना है।
55.922 के.बी. ~
Book-icon.png संदर्भ ग्रंथ सूची


निजी टूल
नामस्थान
संस्करण
क्रियाएं
सुस्वागतम्
संक्षिप्त सूचियाँ
सहायता
सहायक उपकरण