#दीपक भारतदीप की शब्द- पत्रिका » Feed दीपक भारतदीप की शब्द- पत्रिका » Comments Feed दीपक भारतदीप की शब्द- पत्रिका » हिन्दी लेखन में अध्यात्मिकता का पुट होना आवश्यक-हिन्दी चिन्तन Comments Feed चाणक्य संदेश-दूसरे की उन्नति देखकर प्रसन्न होने वाले साधु होते हैं (sadhu svbhav-chankya niti किस जमाने की माशुका हो-हिन्दी हास्य कविता (hindi poem on love) alternate alternate दीपक भारतदीप की शब्द- पत्रिका WordPress.com icon दीपक भारतदीप की शब्द- पत्रिका दीपक बापू कहिन की सहयोगी पत्रिका-यहाँ मेरी मौलिक रचनाएं प्रकाशित है और इसके कहीं अन्य व्यवसायिक प्रकाशन के लिए मेरे से पूर्व अनुमति एवं पारिश्रमिक देना अनिवार्य होगा जो प्रति रचना दो हजार रूपये है । कोई लेखक इसका पूर्ण या आंशिक उपयोग कर सकता है पर उसके लिए उसे सूचना देना चाहिए ऐसा आग्रह है । ब्लोग लेखको के लिए कोई बंदिश नहीं है। संपादक हिन्दी लेखन में अध्यात्मिकता का पुट होना आवश्यक-हिन्दी चिन्तन हिंदी भाषा की चर्चा अक्सर विवादों के कारण अधिक होती है। विवाद यही कि हिंदी थोपी जा रही है या हिंदी वाले दूसरी भाषाओं को कमतर मानते हैं। ऐसे बहुत सारे विवाद हैं जो बरसों से थम नहीं रहे। होता यह है कि कोई शख्स उस विवाद को ढोते हुए बूढ़ा हो जाता है तो लगता है कि विवाद थम गया पर फिर कोई उसका वारिस उठ खड़ा होता है तो लगता है कि विवाद फिर नये रूप में आ गया है। ऐसे केवल भाषा के साथ ही नहीं बल्कि हर प्रकार के विवाद से है जो शायद खड़े ही इसलिये किये जाते हैं कि उनका कभी निराकरण ही न हो। हिंदी के विवाद का भी कोई निपटारा आगे बीस साल तक नहीं होना है। इसलिये हिंदी का चाल, चरित्र और चेहरा फिर से देखना जरूरी है जिसे बहुत कम लोग समझ पाते हैं। हिंदी संस्कृत के बाद विश्व की दूसरी आध्यात्मिक भाषा है। इसका मतलब सीधा यही है कि जैसे जैसे लोगों की अध्यात्मिक ज्ञानपिपासा बढ़ेगी हिंदी का प्रभाव स्वतः बढ़ेगा। फिर संकट कहां हैं? जो लोग अंतर्जाल पर सक्रिय नहीं है उनका क्या कहें जो सक्रिय है वह भी नहीं समझ पा रहे कि हिंदी अब सांगठनिक ढांचों के दायरे’-टीवी, किताब, फिल्म तथा समाचार पत्र पत्रिकाओं-से बाहर निकल कर अनियंित्रत गति से अंतर्जाल पर बढ़ रही है। गूगल के प्रयासों को तो आप जानते हैं। इधर हिंदी में ही वेबसाईटों के पते होने की बात भी चल रही है। ऐसे में सांगठिनक ढांचों में सक्रिय खास वर्ग में चिंता फैली हुई है और हिंदी पर उठ रहे विवाद उसका एक प्रमाण हैं। घबड़ाहट हो रही है कि हिन्दी कहीं अंतर्जाल पर अंग्रेजी के समकक्ष न स्थापित हो जाये। अगर स्थापित हो तो फिर उस नियंत्रण अपना नियंत्रण रहे इसके लिये प्रयत्नशील हिंदी के विवादों पर अधिक बोल और लिख रहे हैं। बात अधिक न करते हुए यह समझाना जरूरी है कि हिंदी के ठेकेदारी भले ही दिखावे के लिये कई लोग करते हैं पर हिंदी ऐसी अध्यात्मिक भाषा है जो साफ सुथरे चरित्र के साथ ही कथनी और करनी के भेद से परे रहने की शर्त रखती है। आप चाहे हिंदी में कितने भी उपन्यास, कहानियां, व्यंग्य या अन्य रचनायें लिखे आम हिंदी भाषी का यह स्वभाव है कि वह आपके चरित्र को देखता है। आप हिंदी के विकास का नारा लगायें खूब प्रचार मिलेगा पर हिंदी भाषियों का यह स्वभाव है कि जब तक आपकी रचनाओं के आध्यात्मिक ज्ञान और चरित्र में देवत्व का बोध नहीं होगा वह आपको हृदय से सम्मान नहीं देगा। हिंदी में यह भाव संस्कृत से ही आया है। सच बात तो यह है कि संस्कृत कभी की लुप्त हो गयी होती अगर उसमें अध्यात्मिक रचनाओं का खजाना नहीं होता। कई लोगों को यह अजीब लगे पर जरा वह स्वयं अपने अंदर झांकें। भक्ति काल के कबीर, तुलसी, सूर, मीरा तथा अन्य कवियों को नाम जन जन में छाया हुआ मिलेगा भले ही उनकी रचनायें हिंदी में अनुवाद कर पढ़ी और सुनाई जाती हैं। इसके बाद भी इतने सारे कवि लेखक और चिंतक हुए पर उनको वही लोग जानते हैं जो अधिक शिक्षित हैं। भक्ति काल के कवियों का नाम गांव गांव में जाना जाता है मगर यह बात आप उसके बाद के कवियों और लेखकों के बारे में नहीं कह सकते। इससे यह स्पष्ट होता है कि हिंदी भाषी लोग ऐसी रचनायें देखना चाहते हैं जिनसे कुछ जीवन में सीखने का अवसर मिले। साथ ही कवि या लेखक का चरित्र भी उनके लिये प्रेरक होना चाहिये। संस्कृत में वाल्मीकि, वेदव्यास तथा महर्षि शुक का नाम लेखक के रूप में नहीं बल्कि देवता की तरह लिया जाता है। अगर आप अपने जीवन में केवल लिखने के लिये ही लिखते हैं और यह बात प्रमाणित नहीं होती कि आपका चरित्र वैसा ही है तो हिंदी में आपको अधिक सम्मान नहीं मिलेगा भले ही आप कितनी भी संस्थाओं से पुरुस्कार जीत लें। समाज के आपसी समझौतों और द्वंद्वों के बीच में सामग्री ढूंढकर उस पर गद्य या पद्य लिखने से केवल आप सम्मानीय नहीं हो जायेंगे बल्कि उसमेें ऐसे निष्कर्ष भी रखने पड़ेंगे जिनमें अध्यात्मिकता का बोध होता हो। यहां अध्यात्म से आशय भी स्पष्ट कर दें। श्रीमद्भागवत गीता में अध्यात्म हमारी देह के अंदर मौजूद वह तत्व है जो परमात्मा का अंश है। इसी को जानने समझने की प्रक्रिया का नाम अध्यात्मिकता है। इस प्रक्रिया से निकले संदेश को ही अध्यात्मिक ज्ञान कहा जाता है। देह से संबंधित सारे ज्ञान सांसरिक होते हैं जिनको आप विज्ञान भी कह सकते हैं। आप अपनी रचनाओं में सांसरिक बातों पर लिखकर खूब नाम और नामा कमा सकते हैं पर सामान्य हिंदी भाषी-यह नियम क्षेत्रीय भाषाओं पर भी लागू है-आपको देव लेखक नहीं मानेगा। इतना ही नहीं अगर आप हिंदी का विरोध भी करते हैं तो बहुत कम लोग उस पर विचलित होंगे। वजह हिंदी के स्वाभाविक अध्यात्मिक भाव से ओतप्रोत लोग यह जानते हैं कि जिसके पास अध्यात्मिक ज्ञान नहीं है वही ऐसा करता है। इसलिये हिंदी के समर्थक और विरोधियों को सामान्य हिन्दी भाषी से यह अपेक्षा बिल्कुल नहीं करना चाहिए कि वह उनके द्वंद्वों को देखकर उनको अनुग्रहीत करने वाला है। केवल हिन्दी भाषा ही नहीं बल्कि किसी भी भारतीय भाषा का भी यही स्वभाव है और हिन्दी का विरोध किसी भी भाषा का आम आदमी नहीं करेगा। आखिर इसमें भी उन्हीं पवित्र नामों का समावेश है-यथा राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गुरु नानक देव, शिवाजी, समर्थ रामदास, कबीर, तुलसी, रहीम, सूरदास, तथा सुब्रह्मण्यम भारती-जो कि अन्य भाषाओं में है। लोगों की भाषा अलग है पर उनके मन में बसे नाम वैसे ही हिंदी में है तो भला आम आदमी इसका क्यों अपमान करना चाहेगा? इसलिये हिंदी के समर्थक अगर यह सोचते हों कि हिंदी बचाने के नारे पर सब उनके साथ आकर खड़े हों तो उनको अपने चरित्र में देवत्व का प्रमाण देना होगा। उसी तरह हिंदी के विरोध करने वालों को भी यह प्रमाणित करना होगा कि वह प्राचीन काल के देवताओं और दैत्यों से अधिक शक्तिशाली हैं। यह हिन्दी अध्यात्म की भाषा है जो बिना शब्द बोले भी गेय होती है-अरे, आपने देवताओं के नाम सुने तो होंगे उनके फोटो देखकर कोई भी पहचान जाता है कि यह किसका नाम है भले ही उस पर नाम न लिखा हो। उसी तरह मंदिर में जाकर कोई गैर हिंदी भाषी आदमी हाथ जोड़कर भगवान को प्रणाम करता है तो उसके पास खड़ा गैर हिन्दी भाषी यह जानते हैं कि वह भगवान को सादर प्रणाम कर रहा है। इस क्रिया को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जाता पर हाथ पांव उसकी अनुभूति करा देते हैं अगर आपको इस पर शक हो तो वृंदावन या हरिद्वार में जाकर ऐसे स्थानों-यथा बांके बिहारी मंदिर और हर की पौड़ी-पर जाकर देखें जहां अनेक लोग ऐसे आते हैं जिनको हिन्दी नहीं आती पर वह अपने लोगों के साथ वहां आकर अपने मन को प्रफुल्लित करते हैं। वहां हिन्दी अव्यक्त है पर उसका भाव सभी के मन में है। अधिक क्या लिखें? सभी भारतीय भाषाऐं अध्यात्मिक ज्ञान से संपन्न हैं इसलिये उनके आपसी विरोध संभव नहीं है। हमें तो लगता है कि यह विवाद वह लोग योजनाबद्ध ढंग से जीवित रखना चाहते हैं जो हिन्दी या भारतीय भाषा बोलते हैं पर उसके अध्यात्मिक ज्ञान का उनमें अभाव है। यह हमारा मत है। हम कोई सिद्ध नहीं है। जो एक आम आदमी के रूप में आता है लिख देते हैं। कोई गल्ती हो उससे पीछे हटने में हमें संकोच नहीं होता क्योंकि अध्यात्मिक ज्ञान पढ़ते हुए हमने यही सीखा है। ————- कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर http://anant-shabd.blogspot.com —————————– ‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है। अन्य ब्लाग 1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका 2.दीपक भारतदीप का चिंतन 3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका About these ads Like this: Like Be the first to like this. By दीपक भारतदीप, on दिसम्बर 7, 2009 at 7:52 अपराह्न, under abhivyakti, arebic, अनुभूति, अभिव्यक्ति, आध्यात्म, आलेख, दीपक भारतदीप, दीपकबापू, भय का शासन, मस्तराम, शिक्षा, संस्कार, हिंदी साहित्य, हिन्दी, bharat, Deepak bapu, Deepak bharatdeep, E-patrika. Tags: कला, मनोरंजन, मस्ती, संपादकीय, समाज, हिंदी साहित्य, editorial, hindi article, masti. 1 टिप्पणी Post a comment or leave a trackback: Trackback URL. « चाणक्य संदेश-दूसरे की उन्नति देखकर प्रसन्न होने वाले साधु होते हैं (sadhu svbhav-chankya niti किस जमाने की माशुका हो-हिन्दी हास्य कविता (hindi poem on love) » टिप्पणियाँ * Krishna Kumar Mishra On दिसम्बर 7, 2009 at 10:33 अपराह्न Permalink | Reply क्यों भाई किस भाषा के लेखन में इन सभी पुटों की आवश्यकता नही होती, हिन्दी में ऐसा क्या हैं। Leave a Reply Cancel reply Enter your comment here... ____________________________________________________________ ____________________________________________________________ ____________________________________________________________ ____________________________________________________________ Fill in your details below or click an icon to log in: * * * * Gravatar Email (आवश्यक) (Address never made public) ____________________ नाम (आवश्यक) ____________________ वेबसाईट ____________________ WordPress.com Logo You are commenting using your WordPress.com account. 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