स्वयं एक दृष्टिहीन थे। सामान्य बच्चे या तो रोमन लिपि में पढ़ते हैं या देवनागरी लिपि में, लेकिन दृष्टिहीन बच्चों के पढ़ने के लिए लुई ब्रेल ने अलग लिपि विकसित की और उसे ब्रेल लिपि नाम मिला। करवा दिया। उस स्कूल में "वेलन्टीन होउ" द्वारा बनाई गई लिपि से पढ़ाई होती थी, पर यह लिपि अधूरी थी। लुई ने यहाँ इतिहास, भूगोल और गणित में "सोनोग्राफी" लिपि के बारे में बताया। यह लिपि कागज पर अक्षरों को उभारकर प्रखर बुद्धि के लुई ने इसी लिपि को आधार बनाकर 12 की बजाय मात्र 6 बल्कि गणितीय चिह्न और संगीत के नोटेशन भी लिखे जा सकते थे। यही लिपि आज सर्वमान्य है। लुई ने जब यह लिपि बनाई तब वे मात्र 15 वर्ष के थे। सन् 1824 में बनी यह लिपि दुनिया के लगभग सभी देशों में उपयोग में लाई जाती हमारे देश में भी ब्रेल लिपि को मान्यता प्राप्त है। इस‍ लिपि में स्कूली प्रतिवर्ष छपने वाला कालनिर्णय पंचांग आदि उपलब्ध हैं। ब्रेल लिपि में साथ भी यह हुआ। उनके जीवनकाल में ब्रेल लिपि को मान्यता नहीं मिली। इंस्टिट्‍यूट फॉर ब्लाइंड यूथ' ने इस लिपि को मान्यता दी। कितने दुख की पियानोवादक थे। ब्रेल लिपि के द्वारा उन्होंने दृष्टिहीनों के जीवन में जो